पानी का बूँद और उसका उसका संघर्ष

पानी का बूँद, प्रभु से प्रश्न करता हुआ, की अन्ततः उसे ही क्यों इतना कष्ट मिला, पहले ग्रीष्म रितु के तपिश में भाप बन बादल बनना, फिर बादल बन दूर देश जा कर वृष्टि बन गिरना, कभी पत्थर पर कभी जंगल में, फिर नदी, नाला होता हुआ जलाशय समुद्र तक थकान भरी यात्रा | उत्तर में प्रभु बताते है की कैसे उसका संघर्ष, जीवन दायी है, समस्त सृष्टि के लिए- 

निर्झर गिरता जल निरंतर

मेघ, पर्वत, पत्थर हो कर 

नदी, जलाशय, समुद्र में मिलकर 

विस्मित नीर प्रश्न अनुत्तर 

खुश हो क्या तुम मुझे ही चुनकर?

कृषक, मवेशी, निपुण, तरुवर

पुलकित देख घुमड़ता काला जलधर  

जीवन श्रिष्टि आधार वृष्टि पर

जल से चलता जगत रघुवर

क्यों यह त्रुटि तुम्हे चुनकर?      

 

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